गर्भपात कानूनों की समीक्षा करेगा सुप्रीम कोर्ट

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उच्चतम न्यायालय गर्भपात से संबंधित चिकित्सीय गर्भ समापन कानून के प्रावधानों की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली महिलाओं की जनहित याचिका पर सुनवाई के लिए सोमवार को तैयार हो गया। याचिका में कहा गया है कि चुनिन्दा कानूनी प्रावधानों से महिलाओं के स्वास्थ्य के अधिकार, प्रजनन के चुनाव की स्वतंत्रता और निजता के अधिकार का हनन होता है।

शीर्ष अदालत में जनहित याचिका दायर करने वाली महिलाओं ने सिर्फ महिला की जिंदगी बचाने या भ्रूण में विकृति होने की स्थिति में ही गर्भपात की अनुमति देने संबंधी चिकित्सीय गर्भ समापन कानून की धारा 3(2)(ए) और 3(2)(बी) प्रावधानों को चुनौती दी है। 

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने याचिका पर नोटिस जारी किया। यह याचिका स्वाति अग्रवाल, गरिमा सक्सेरिया और प्राची वत्स ने दायर की है।

याचिका में कहा गया है कि इस कानून में प्रावधान है कि गर्भ समापन के लिए पंजीकृत चिकित्सक की राय अनिवार्य होगी और 20 सप्ताह बाद गर्भवती महिला की जिंदगी को जोखिम होने की स्थिति में ही गर्भपात किया जा सकता है। याचिका के अनुसार ये प्रावधान महिला के स्वास्थ के अधिकार, प्रजनन के चुनाव और निजता के अधिकार का उल्लंघन करते हैं।

इस कानून की धारा 3 (2)(ए) के अनुसार 12 सप्ताह तक के गर्भ के मामले में डॉक्टर को यह लिखकर देना होगा कि गर्भावस्था जारी रहने से महिला की जिंदगी को खतरा हो सकता है या फिर इससे उसके शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान पहुंच सकता है या यदि बच्चा जन्म लेता है तो उसे भी खतरा हो सकता है।

याचिका में कहा गया है कि यह प्रावधान गर्भावस्था जारी रखने की स्थिति में महिला की जिंदगी के जोखिम या विकृति के बारे में डाक्टर की सलाह की पूर्व शर्त लगाकर महिला के प्रजनन के चुनाव के अधिकार को बुरी तरह सीमित करता है। याचिका के अनुसार यह शर्त महिला के स्वतंत्र रूप से प्रजनन के चुनाव के अधिकार को बाधित करता है।

इसी तरह, धारा 3 (2) (बी) के अनुसार महिला या बच्चे के जन्म लेने पर उसकी जिंदगी के खतरे को ध्यान में रखते हुये 20 सप्ताह से अधिक के गर्भ समापन पर रोक लगाता है।

याचिका में कहा गया है कि शासन किसी महिला को उसकी इच्छा के विपरीत गर्भावस्था जारी रखने के लिये बाध्य नहीं कर सकता, यदि इसे जारी रखने से शारीरिक, मानसिक और सामाजिक-आर्थिक समस्यायें उत्पन्न होंगी।

याचिका में कानून के इन प्रावधानों को असंवैधानिक घोषित करने का अनुरोध किया गया है क्योंकि इससे एकल महिलाओं की यौन स्वायत्तता पर प्रतिकूल असर पड़ता है।

याचिका में चिकित्सीय गर्भ समापन संशोधन विधेयक 2014 लागू करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है। इस विधेयक में गर्भपात के लिये पंजीकृत डाक्टर की राय की अनिवार्यता और गर्भ समापन की अवधि बढ़ाकर 24 सप्ताह करने का प्रावधान था।

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